भारतीय संस्कृति में चारों ही वेदों का अतुलनीय और महत्वपूर्ण योगदान है यही कारण है कि आज का विज्ञान बड़ी-बड़ी वैज्ञानिक संस्थाएं आज भी वेदों पर रिसर्च कर रही हैं और इस बात को देखकर हैरान है कि वेदों में केवल संस्कृत के श्लोक ही नहीं अपितु इन संस्कृत के श्लोकों में एक महान विज्ञान छुपा हुआ है जो प्राचीन सभ्यता को हम से कई गुना आगे चलते वह दर्शाता है।
वेदों का संकलन महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपायन जी ने किया था।
सामवेद का प्रकाश महर्षि आदित्य के हृदय में हुआ था। यदि आचार्य सारण की माने तो ऋग्वेद में लिखे गए मंत्रों को अथवा गाए जाने वाले मंत्रों को साम कहते हैं। जिसका अर्थ होता है कि ऋचाओं पर ही साम आश्रित है।
सरल शब्दों में कहा जाए तो सामवेद का अर्थ होता है वह ग्रंथ जिसकी लिखित मंत्र गाए जा सकते हों और जो संगीतमय हों।
इसमें यज्ञ अनुष्ठान के प्रयोग होने वाले उपयोगी मंत्रों का संकलन है।
पुराणों के अनुसार सामवेद की सहस्र शाखाओं के होने का वर्णन मिलता है। किंतु वर्तमान में केवल 13 शाखाओं का ही पता चलता है।
इस वेद का नाम सामवेद इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें गायन पद्धति के निश्चित मंत्र ही हैं।
सामवेद संहिता में अट्ठारह सौ 75 मंत्र हैं जिनमें से लगभग 1504 मंत्र तो ऋग्वेद के ही हैं।
यदि आप सामवेद पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके उसे डाउनलोड कर सकते हैं।
धन्यवाद।